Monday, April 25, 2011


 












इक उमर गुज़र गई बहारों के ख्वाब में
इक उमर गुज़र जाएगी एक पैग शराब में.

निगाहों की रौशनी मद्धम  हो गई है

जिगर  जूझ रहा ज़िंदगी के जवाब में.

ढूंढता है जवानी का जोश नादां

मुर्दों के कबाब में.

जमाले-ज़िंदगी को ज़ाहिल बना

ढूंढता है मन जमाल हुस्नो-शवाब में.

कैसे करूं यकीं उसका "प्रताप" मैं

कुछ भी नज़र न आये तुम सा जनाब में.


प्रबल प्रताप सिंह