बता ऐ मौला मेरे...!
चश्म से रश्के-ऐनक हटा मेरे
मैं कौन हूं, बता ऐ मौला मेरे.
यूं ही बिता दूं रश्क में सारी उमर
मैं क्या करून बता, ऐ मौला मेरे.
सभी अपने से दिखते हैं जहां में
मैं किसको शिकस्त दूं , बता ऐ मौला मेरे.
सबकी मजिल एक, क्यों रश्ते सबके अलग
मैं किस रश्ते पर चलूँ , बता ऐ मौला मेरे.
तुझ तक पहुंचना है क्यों मुश्किल
मैं तुझ तक कैसे पहुंचू , बता ऐ मौला मेरे.
तुझको परखना भी आसां नहीं
मैं तुझे कैसे पहिचानूं , बता ऐ मौला मेरे.
प्रबल प्रताप सिंह
shukria sanjay ji...!!
ReplyDeleteघट-घट के वासी हैं मौला ... वह तो हम माया मोह में डूबे इंसान ही है जो उसकी सत्ता के बेखर रहते है और जब विपदा आती है तो तभी पुकारते हैं.....
ReplyDeleteभक्तिभाव से ओत-प्रोत ईश्वरीय सत्ता के मार्ग पर चलने को प्रेरित करती हुई
आभार और हार्दिक शुभकामनाएं
तुझको परखना भी आसां नहीं
ReplyDeleteमैं तुझे कैसे पहिचानूं , बता ऐ मौला मेरे.
....घट-घट के वासी हैं मौला ... वह तो हम माया मोह में डूबे इंसान ही है जो उसकी सत्ता के बेखर रहते है और जब विपदा आती है तो तभी पुकारते हैं.....
भक्तिभाव से ओत-प्रोत ईश्वरीय सत्ता के मार्ग पर चलने को प्रेरित करती हुई
आभार और हार्दिक शुभकामनाएं
comment ke liey KAVITA JI aapka bahut-bahut shukria...!!
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