Tuesday, August 3, 2010

ग़ज़ल














इंसानियत छोड़िए, सब जल जाता  है 
आदमी भीड़ में भेड़िया बन जाता है.

मनिया अपनी मुन्नी को चाहे जितना छुपाये 
यौवन ' यू ट्यूब ' पर बिक जाता है.

छुपाओ लाख शयनकक्ष की शब
 ' इन्टरनेट ' पर सब दिख जाता है.

विज्ञान कभी वरदान नहीं बन पाया
अभिशाप बन हर बार आ जाता है.

आदमी तो आदमी ठहरा 
सूरा पीने के बाद क्यों सूअर बन जाता है.
  
प्रबल प्रताप सिंह 

1 comment:

  1. छुपाओ लाख शयनकक्ष की शब
    ' इन्टरनेट ' पर सब दिख जाता है
    khoobsurat gajal........

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